[PDF] ” Bhagavad Gita ” श्रीमद्भगवद्गीता Hindi –

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PDF Title : Shrimad Bhagavad Gita
Hindi Title : श्रीमद्भगवद्गीता
Total Page : 1299 Pages
Author: Swami Ramsukhdas
PDF Size : 7.7 MB
Language : Hindi
PDF Link : Available


Summary
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Shrimad Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता) – Hindi

प्रायः सभी साधकोंके अनुभवकी बात है कि कल्याणकी उत्कट अभिलाषा जाग्रतू होते ही कर्म, पदार्थ और व्यक्ति-(परिवार-) से उनकी अरुचि होने लगती है। परन्तु वास्तवमें देहेके साथ घनिष्ठ सम्बन्ध होनेसे यह आराम-विश्रामकी इच्छा ही है, जो साधककी उन्‍नतिमें बाधक है। साधकोंके मनमें ऐसा भाव रहता है कि कर्म, पदार्थ और व्यक्तिका स्वरूपसे त्याग करनेपर ही हम परमार्थमार्गमें आगे बढ़ सकते हैं।

परन्तु वास्तवमें इनका स्वरूपसे त्याग न करके इनमें आसक्तिका त्याग करना ही आवश्यक है। सांख्ययोगमें उत्कट वैराग्यके बिना आसक्तिका त्याग करना कठिन होता है। परन्तु कर्मयोगमें वैराग्यकी कमी होनेपर भी केवल दूसरोंके लिये कर्म करनेसे आसक्तिका त्याग सुगमतापूर्वक हो जाता है।

गीताने एकान्तमें रहकर साधन करनेका भी आदर किया है; परन्तु एकान्तमें सात्तिवक पुरुष तो साधन-भजनमें अपना समय बिताता है, पर राजस पुरुष संकल्प- विकल्पमें, तामस पुरुष निद्रा-आलस्य-प्रमादमें अपना समय बिताता है, जो पतन करनेवाला है। इसलिये साधककी रुचि तो एकान्तकी ही रहनी चाहिये अर्थात्‌ सांसारिक कर्मोका त्याग करके पारमार्थिक कार्य करनेमें ही उसकी प्रवृत्ति रहनी चाहिये, परन्तु कर्तव्यरूपसे जो कर्म सामने आ जाय, उसको वह तत्परतापूर्वक करे।

उस कर्ममें उसका राग नहीं होना चाहिये। राग न तो जन- समुदायमें होना चाहिये और न अकर्मण्यतामें ही। कहीं भी राग न रहनेसे साधकका बहुत जल्दी कल्याण हो जाता है। वास्तवमें शरीरको एकान्तमें ले जानेको ही एकान्त मान लेना भूल है; क्योंकि शरीर संसारका ही एक अंश है। अतः शरीरसे सम्बन्ध-विच्छेद होना अर्थात्‌ उसमें अहंता- ममता न रहना ही वास्तविक एकान्त है।

Shrimad Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता) – Hindi PDF


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